मोहब्बत हो गयी है तुम्हें ( भाग 1 ) Laiba Hasan द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मोहब्बत हो गयी है तुम्हें ( भाग 1 )

बिस्तर पर चुपचाप लेटी हानिया को पता ही नहीं चला के कब उसकी आंख लगी बाहर होती जोरदार बारिश और बादल की गर्जन से उसकी आंख खुली और सीधे रूम की साईड वाली खिड़की पर नजर पड़ी जहां से बारिश की फुहारें अंदर आ रही थी हानिया उठीं और खिड़की भेड़ कर वापस बेड पर लेट कर आंखें बंद कर ली आंखें बंद करते ही पुरानी बातें किसी फिल्म की तरह उसकी आंखों के नीचे घुमने लगी.
ये बारिश होने पर तुम मोर की तरह इतनी खुश क्यो हो जाती हो हानि.. उसने उसे छत पर जाते हुए देखा तो पूछ बैठा..
ये तुम जैसे बोरिंग लोग नहीं समझ सकते हटो और जाने दो वरना बारिश रूक जाएगी.. हानिया ने दो टूक में जवाब दिया और छत की ओर भागी.....
ये वाकिया याद आया तो आया साथ ही साथ और भी कई वाकियात भी याद आने लगे अगर याद आने लगे कहती रही तो शायद थोड़ी नाइंसाफी होगी हानिया कुछ भूली ही कब थी
उसे इन पांच सालों में हुआ सबकुछ याद था जब वह पहली बार आया था बाबा ने अपने जानते में अच्छी खासी जांच करके उसे छत वाला रूम किराए पर दे दिया था।
उस दिन वो जल्दी में शायद किसी जरूरी काम से बाहर जा रहा था हानिया भी पतंग पकड़ने के लिए तेजी से छत की तरफ भागी और फिर अनजाने में वो काफी जोर से टकराईं थी उससे हानिया का बैलेंस बिगड़ा और वो नीचे आ ही चुकी होती मगर उसी पल अलयान ने कस कर उसकी कलाई पकड़ी और झटके से उसे ऊपर की तरफ खींच लिया
हानिया ने खुद को ठीक किया और उसकी तरफ देखते हुए अपनी आदत के मुताबिक बिना कुछ सोचे बोलना शुरू कर दिया, किस तरह के इंसान हैं आप और कैसे बेध्यानी में चलें आ रहें थे इतने जोर से टकराईं हु मै उसने हाथ सहलाते हुए बोलना जारी रखा अगर नीचे गिर जाती तो हानिया ने एक नजर उस जगह पर डालीं जहां वो कब का गिरी पड़ी होती और फिर अपने मासूम चेहरे को और मासूम बनाते हुए आगे बोला मेरा तो हश्र ही बिगड़ जाता शायद उसने खुद को बुरे हश्र में तसव्वुर कर लिया था। उसका शुक्रिया अदा करने के बजाय हानिया उसे अच्छा खासा सुना चुकी थी वो शायद हानिया के चुप ही होने के इंतेज़ार में था उसके चुप होते ही उसने गौर से हानिया को देखा और सौरी बोलते हुए सीढ़ियां उतर कर नीचे चला गया उसके सौरी ने हानिया को दो मिनट के लिए सोच में डाल दिया था शायद मुझे उसे थैंक्यू बोलना था और सौरी भी मैंने ही एक नजर भी सीढ़ियों की तरफ नहीं डाली के कोई आ तो नहीं रहा खामखां में ही इतना सुना दिया उसको हानिया ने नीचे सीढ़ियों की तरफ देखा और अपना पसंदीदा गाना गुनगुनाते हुए नीचे उतर गयी।
यकीनन उसके ख्याल में और भी सारी पुरानी बातें आती लेकिन हवा के एक जोरदार झोंके की वजह से खिड़की का पल्ला वाल से टकराया और उसकी आवाज से एकबार फिर हानिया के ख्यालों का सिलसिला टूट गया। बारिश अभी भी जोरदार हो रही थी हानिया फिर से उठीं और इस बार उसने खिड़की बंद करके कुण्डी भी लगा दिया था।
घड़ी में टाइम देखा तो 11 बज रहे थे... अरे अम्मी उठने वाली होगी और किरन आज भी नहीं आईं मै खामखां में ही उसका इंतज़ार कर रही थी, अपने आप से ही बात करते हुए हानिया किचन की तरफ बढ़ गई। हानिया की आंख सुबह 6 बजे खुल जाती थी सुबह उठते ही वो सबसे पहले बरामदे में रखें पेड़ों को पानी देती कुछ गमले छत पर भी थे लेकिन उन्हें किरन ही पानी दिया करती हानिया से जितना हो सकता था वो छत पर जाने से पेहरेज ही करती थी छत की साफ सफाई का जो भी काम था वो भी किरन ही देखती थी।
हानिया ने सारी चीज़ें चाय के पैन में डालकर गैस ओन किया और आम्मी के रूम की तरफ चल पड़ी आम्मी का रूम उसके रूम के दो रूम बाद था आम्मी भी सुबह ही उठ जाया करती थीं लेकिन जबसे उनकी तबियत ख़राब रहने लगी थी डाक्टर ने उन्हें अच्छे से नींद लेने की सलाह दी थी इसलिए हानिया भी उन्हें लेट ही उठाती थी उसने उनकी देखभाल के लिए काम करने वाली लड़की को भी रख लिया था जो सुबह 8 बजे आती और शाम 7 बजे तक उनके साथ ही रहती सुबह 9 बजे हानिया स्कूल के लिए निकल जाती
उसने पिछले साल ही अपनी पढ़ाई पूरी की और करीब के ही एक स्कूल में उसे टीचर की नौकरी मिल गई 3 बजे तक स्कूल की छुट्टी हो जाती और साढ़े तीन चार बजे तक हानिया घर आ जाती फिर खाना वगैरह खाने बाद अगर आम्मी का मन होता तो उन्हें लेकर नहीं तो अकेले ही साढ़े चार बजे तक पार्क चली जाया करती और साढ़े पांच या छह बजे तक वापस आ जाया करती.......
शाम को काफी बच्चे आते वहां कुछ पैरेंट्स के साथ और आस पास के कुछ बच्चे अकेले ही आ जाया करते थे हानिया को वहां काफी अच्छा लगता था दिल बहल जाया करता था उसका या फिर ये कहें बाहर के शोर में शायद मशगूल होकर उसका ध्यान अपने अंदर के शोर की तरफ नहीं जाता था बाज दफा अंदर के शोर से बचने के लिए बाहर के शोर का सहारा लेना ही पड़ता है और उसके अंदर तो सन्नाटा ही था जो शोर बनकर उभरता था कभी उसका मन ना भी हो तो आम्मी उसे जबरदस्ती भेज दिया करती थीं
क्योंकि हानिया ने अपनी जिंदगी घर से स्कूल तक के बीच में ही जब्त कर रखी थी इन पांच सालों में उसने बाहर की दुनिया से खुद को अलग कर रखा आम्मी बतातीं नहीं थी लेकिन उन्हें सब से ज्यादा इस बात की ही तो तकलीफ थी।
हानिया आम्मी के रूम में उन्हें उठाने के इरादे से दाखिल हुई लेकिन आम्मी पहले ही उठ चुकी थी और तस्बीह पढ़कर दुआ मांग रहीं थीं हानिया वहीं उनके पास बैठ गई.....

किरन आज भी नहीं आईं हानि? उन्होंने ने मुंह पर हाथ फेरकर हानिया के चेहरे पर फुंकने के बाद पुछा...
नहीं आम्मी सुबह से काफी तेज बारिश हो रही है शायद इसी वजह से नहीं आईं.. मैं सुबह छह बजे से उठी हुई थी लेकिन बीच में आंख लग गयी आप जाग रहीं थीं तो अपने आवाज क्यो नही लगाई मुझे.. हानिया ने प्यार भरा शिकवा किया...
मै दुआ मांग कर तुम्हें आवाज देने ही वाली थी मेरी जान.. आम्मी ने हानिया के सिर पर पर हाथ फेरते हुए कहा..
हानिया को किचन में बन रही चाय का ध्यान आया, अच्छा आम्मी मैं नाश्ता लेकर के आती हुं...आज बालकनी में नाश्ता करेंगे... हानिया ने उन्हें सहारा देकर खड़ा किया आम्मी बालकनी में लगी चेयर पर बैठ गई और हानिया कीचन की तरह चल पड़ी।
हानिया ने चाय पर नजर डाली जोकि कुछ ज्यादा ही पक चुकी थी हानिया ने उसे हटाकर दुसरी चाय चढ़ा दी और ब्रेड
टोस्टर में डालकर वहीं सेल्फ से लग कर खड़ी हो गई...
जब तन्हा होती चुपके से कई ख्याल उसके दिल ओ दिमाग पर हावी होने लगते ख्यालों में फिर से अलयान आ गया था...
चुपचाप छत पर बैठा किताब में नजरें गड़ाए,
वो अपनी कुछ किताबें घर पर ही छोड़ कर जाता था और जब जल्दी में होता तो दरवाजे में सिर्फ कुण्डी ही लगा कर चला जाया करता..कई बार जब वो कालेज गया होता तो हानिया चुपके से कमरे में जाकर कोई ना कोई किताब छुपा दिया करती जब वो वापिस आ कर किताब ना मिलने पर पूरा कमरा उलट पलट देता तो हानिया देखकर मजे लेती....
ऐसे ही एक दिन वो कमरे में जाकर किताब उठा ही रही थी
तभी पीछे से आवाज आई...
यहां क्या कर रहीं हैं आप? ना जाने अलयान कहां से आ गया था आमतौर पर वो कालेज जाने के बाद शाम तक ही वापस आता था...
अलयान की आवाज सुनकर हानिया उसकी तरफ पलट तो गई पर किताब उसने पकड़ रखी थी...

हाथ में क्या है आपके?.. उसने हानिया के पीछे किए हुए हाथों पर गौर करते हुए कहा.. हानिया की तो बोलती ही बंद हो गयी..
अलयान ने दुबारा नहीं पुछा और धीरे धीरे उसकी तरफ बढ़ने लगा... हानिया कुछ ज्यादा ही डर रही थी लेकिन वो वहां से भागी नहीं उसका जी तो यही चाह रहा था लेकिन ना जाने और कौन सी चाह थी जिसने उसे अभी तक यहां रोक रखा था...उसके एक हाथ से कम फासले पर था वो हानिया का डर कहीं गायब हो गया उसने उसे इतने करीब से पहली बार देखा था... उसकी आंखें ज्यादा बढ़ी तो नहीं थी लेकिन खुबसूरत थी बहोत गहरी भी नही थी लेकिन अगर कोई उनमें डूबना चाहे तो बेशक वो डूब सकता था उसकी आंखें हानिया पर ही टिकी थी और हानिया को तो अब अपनी दोस्त फरिहा की बात सच मालुम पड़ती हुई नजर आ रही थी सच ही तो कहती हैं वो ना जाने मुझे इतने प्यारे इंसान को परेशान करके क्यो खुशी मिलती है उसके दिमाग में यही सब चल रहा था

इसे कहां ले जा रहीं थी आप? अलयान ने पीछे होते हुए अपने हाथ में पकड़ी किताब दिखा कर पूछा..
हानिया ने अपने हाथ आगे करके देखा तो उसे समझ आया कि वो तो अलयान को देखने में इतनी मशगूल हो गयी थी के उसे पता ही नही चला कब अलयान ने उसके हाथों से किताब निकाल ली..
बोलिए? उसने एक बार फिर किताब दिखाते हुए हानिया से पूछा... हानिया को सूझ ही नहीं रहा था कि क्या जवाब दें...
अच्छा मै समझ गया हफ्ते में चार बार मेरी किताबें जो अपनी जगह बदलती हैं वो आप की बदौलत होता है ना...
हां..ना नहीं तो अपनी चोरी पकड़े जाने पर हानिया को झूठ बोलने के अलावा कोई और रास्ता नजर नहीं आ रहा था पर वो झूठ बोलने में कितनी कच्ची थी ये अंदाजा तो आप उसकी आवाज से लगा ही सकते हैं उसे अलयान से बिलकुल भी डर नहीं लग रहा था उसे डर तो इस बात का लग रहा था कि अब ये उसकी शिकायत बाबा से कर देगा तो क्या होगा..
आप झूठ भी बोलतीं हैं उसने एक कदम हानिया की तरफ़ बढ़ाते हुए पूछा हानिया इससे पहले कोई जवाब देती उसका मोबाइल बज उठा था और रिंगटोन पर हानिया का फेवरेट गाना था

ओ रे पिया रे ओ रे पिया
उड़ने लगा क्यों मन बावला रे आया कहाँ से ये हौसला रे
ओ रे पिया रे ओ रे पिया...

उसने झुक कर बेड पर से मोबाइल उठाया और दो मिनट हुंह हां में जवाब देकर फोन रखते हुए हानिया से मुखातिब हुआ..
लेकिन वहां अब कोई नहीं था हानिया मौका देख कर फरार हो चुकी थी उसे इस बात पर काफी तेज हंसी आयी थी जोकि सीढ़ियों पर बैठी हानिया ने सुनी थी उसने मुस्कुराते हुए उसके कमरे की तरफ देखा।

कहां रह गयी हानि, आम्मी की आवाज पर हानिया की सोच टूटी उसने चाय की तरफ देखा जोकि अच्छे से बन चुकी थी और ब्रेड भी ना जाने कब से टोस्टर के बाहर आ चुकीं थीं..
उसने एक ठंडी सांस छोड़ी जैसे रूह में उतर चुके सारी पुरानी यादों और किस्सों को बाहर करना चाह रही हो..
उसने दो कप चाय निकाली फ्रिज से बटर निकाल कर ट्रे में ब्रेड के साथ रखा और बालकनी की तरफ चल पड़ी ।

【कहानी आगे जारी रहेगी अभी तो आप सिर्फ हानिया से ही मिलें हैं सफर तो अभी शुरू हुआ है आगे और भी कई किरदार आप से मिलने के इंतज़ार में है】